स्निग्धा ओम ~ बुद्ध
बुद्ध
एक रात अचानक
घर की देहलीज़ लांघ गए –
सत्य की खोज में.
पीछे छोड़ गये
यशोधरा की गोद में
नवजाद शिशु.
माँ के गर्भ से निकलते ही
सर से पिता का
साया हट गया।
यशोधरा ने चूड़ामणि
उतार दिया और
भिक्षुणी हो गयी ।
कहानी ज़रा पलट देते हैं अब
यशोधरा
एक रात अचानक
घर की देहलीज़ लांघ गयी –
सत्य की खोज में.
पीछे छोड़ गयी
सिद्धार्थ के साये में
नवजात शिशु
क्या समाज उसे भी
उतनी ही आसानी से
बुद्ध होने देता
जितनी आसानी से
उसने बुद्ध को बुद्ध होने दिया?
सिद्धार्थ पर ना कोई उँगली उठी,
ना ही किसी ने सवालों से
बीन्ध दिया उनका अस्तित्व
छलनी भी नहीं किया गया उनको
आरोपों के बाण से
यशोधरा के सत्य पर कौन विश्वास करता?
आधी रात में अपने नवजात
दुधमुँहे शिशु को छोड़ माँ नहीं जाती
रात को पति के बिस्तर पर होना
तो धर्म है स्त्री का
जो रात में घर से ही चली जाये
उसका तो दामन ही मैला !
लांछन, यातनायें, दुराचार……
सत्य की प्राप्ति शायद हो जाती उसे
पर समाज उसके स्त्रित्व को ही निगल जाता
बुद्ध सफ़ेद है
यशोधरा काली होती
रंग
क्योंकि मुद्दा स्त्री का है या पुरुष का,
समाज इसके अनुरूप अपना रंग बदलता है|
बुद्ध का युद्ध भीतरी था
यशोधरा की लड़ाई भीतर से
अधिक बाहर वालों से होती
यहाँ बुद्ध होना आसान है;
स्त्री होना कठिन
~ स्निग्धा ओम
આ કવિને હું ઓળખતી નથી પણ એના કાવ્યને ઓળખવું પૂરતું છે.
કાવ્ય સ્વયંસ્પષ્ટ છે અને દાહક છે. કોઈ નુકતેચીનીની આવશ્યકતા નથી.
સરસ ગીત કવિ ની ઓળખ તેના કાવ્યો થકી હોય છે ખુબ ખુબ અભિનંદન
समाज आज भी वही है। काव्य आज भी उपयुक्त है
સાચું લલિતભાઈ.