फिराक गोरखपुरी ~ ये माना ज़िन्दगी है * Firak Gorakhpuri

ये माना ज़िन्दगी है चार दिन की
बहुत होते हैं यारों चार दिन भी

खुदा को पा गया वाईज़, मगर है
जरुरत आदमी को आदमी की

मिला हूं मुस्कुरा कर उस से हर बार,
मगर आंखों में भी थी कुछ नमी सी

मोहब्बत में कहें क्या हाल दिल का,
खुशी ही काम आती है ना गम ही

भरी महफ़िल में हर इक से बचा कर,
तेरी आंखों ने मुझसे बात कर ली

लडकपन की अदा है जानलेवा,
गजब की छोकरी है हाथ भर की

रकीब-ए-गमजदा अब सब्र कर ले,
कभी उस से मेरी भी दोस्ती थी

‍~ फिराक गोरखपुरी (28.8.1896 – 3.3.1982)

પૂણ્યતિથિ નિમિત્તે સ્મૃતિવંદના

3 Responses

  1. સરસ રચના સ્મ્રુતિવંદન

  2. ઉમેશ જોષી says:

    સ્મરણ વંદના…

  3. ખૂબ જ સરસ ગઝલ, એક અક્ષરની હમ કાફિયા ગઝલ.

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