मिर्ज़ा ग़ालिब ~ हज़ारों ख्वाहिशें
हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी के हर ख्वाहिश पे दम निकलेबहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले डरे क्यूँ मेरा क़ातिल क्या रहेगा उसकी गरदन परवो ख़ूँ जो चश्म ए तर से उम्र भर यूँ दमबदम निकले निकलना ख़ुल्द से...
हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी के हर ख्वाहिश पे दम निकलेबहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले डरे क्यूँ मेरा क़ातिल क्या रहेगा उसकी गरदन परवो ख़ूँ जो चश्म ए तर से उम्र भर यूँ दमबदम निकले निकलना ख़ुल्द से...
દિવસો જુદાઈના જાય છે, એ જશે જરૂર મિલન સુધી:મને હાથ ઝાલીને લઈ જશે, હવે શત્રુઓ જ સ્વજન સુધી. ન ધરા સુધી, ન ગગન સુધી, નહીં ઉન્નતિ, ન પતન સુધી,અહીં આપણે તો જવુ હતું, ફકત એકમેકના મન સુધી. હજી પાથરી ન...
પ્રતિભાવો