કવિતા શાહ ~ એક હિન્દી રચના
અને આ જ કવિની બીજી એક હિન્દી રચના ना सही अच्छी बुरी तो थी नहीं जिंदगी हम से रूठी तो थी नहीं जिंदगी ये आप के आने तलक चल रही थी यूं रुकी तो थी नहीं बन गया यूं रेत...
અને આ જ કવિની બીજી એક હિન્દી રચના ना सही अच्छी बुरी तो थी नहीं जिंदगी हम से रूठी तो थी नहीं जिंदगी ये आप के आने तलक चल रही थी यूं रुकी तो थी नहीं बन गया यूं रेत...
भरी दुपहरी में अँधियारासूरज परछाई से हाराअंतरतम का नेह निचोड़ें-बुझी हुई बाती सुलगाएँ।आओ फिर से दिया जलाएँ हम पड़ाव को समझे मंज़िललक्ष्य हुआ आँखों से ओझलवर्त्तमान के मोहजाल में-आने वाला कल न भुलाएँ।आओ फिर से दिया जलाएँ। आहुति बाकी यज्ञ...
वृक्ष हों भले खड़े,हों घने हों बड़े,एक पत्र छाँह भी,माँग मत, माँग मत, माँग मत,अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ। तू न थकेगा कभी,तू न रुकेगा कभी,तू न मुड़ेगा कभी,कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ,अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ। यह महान दृश्य है,चल रहा मनुष्य...
પ્રતિભાવો